शनिवार, 29 अगस्त 2015

**सिंहावलोकनी दोहा मुक्तक **(झूठे से झूठे )

**सिंहावलोकनी दोहा मुक्तक **(झूठे से झूठे )
मित्रों ! यह नया प्रयोग करने का प्रयास किया है ,,,,कृपया प्रतिक्रिया अवश्य दें ----
(दोहे के साथ ,,,जिस शब्द से पँक्ति समाप्त होती है ,,उसी शब्द से अगली पंक्ति प्रारम्भ होती है ,,,हर पंक्ति दोहानुसार 13 +11 मात्राभार रखती है )-
*****दोहनुसार  मात्राक्रम प्रति पंक्ति -
4 +4 +2 +3 (1 2 ),,,,,,4 +4+3 (2 1)
या
3+3+4+3 (1 2),,,,,,,3+3+2+3 (2 1 )
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@

झूठे से झूठे हुए ,,,,,,,,,,राजनीति  के लोग ;
लोग भोग में व्यप्त हैं ,अनाचार  का रोग ।
रोग पापमय  फल रहे ,,,,,,खाते अरबों माल ;
माल हमारे टैक्स का ,,,,,नंबर दो में भोग ।।

*****सुरेशपाल वर्मा जसाला (दिल्ली)



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें