रविवार, 23 अगस्त 2015

**सिंहावलोकनी दोहा मुक्तक **

**सिंहावलोकनी दोहा मुक्तक **
मित्रों ! यह नया प्रयोग करने का प्रयास किया है,,,,कृपया प्रतिक्रिया अवश्य दें ----
(दोहे के साथ ,,,जिस शब्द से पँक्ति समाप्त होती है ,,उसी शब्द से अगली पंक्ति प्रारम्भ होती है ,,,हर पंक्ति १३+११ मात्राभार रखती है )मुक्तक में तीसरी पंक्ति का तुकांत भिन्न होता है.
*****दोहा मात्राक्रम प्रति पंक्ति -
4 +4 +2 +3 (1 2 ),,,,,,4 +4+3 (2 1)
या
3+3+4+3 (1 2),,,,,,,3+3+2+3 (2 1 )
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 ***तुलसी जी की जयंती पर विशेष***

[१]
तुलसी जी के कारने ,,,,,,,राम नाम की लूट ;
लूट सको तो लूट लो ,,,मोह-बँधन की छूट ।
छूट-छुटाये हरि मिलै ,मिलै स्वर्ग का धाम ;
धाम-नर्क से मुक्त हों ,पीकर हरि का घूँट ।।
[२]
मैं तुलसी का बावरा ,,,,,,,,,अद्भुत उसका काम ;
काम सभी को भा रहा ,,,,,,, भजते सब श्रीराम।
राम सलोने सार हैं ,,,,,,,,रामायण सियकन्त ;
सियकन्त कृपा सुभग अति,काटे फंद तमाम ।।

 *****सुरेशपाल वर्मा जसाला (दिल्ली)

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