बुधवार, 29 जुलाई 2015

मुक्तक (muktak)

******मुक्तक ******
( हर आतंकी को फांसी दो ,,फांसी का विरोध करे जो,,उसको भी फांसी दो )















आतंकी की फांसी पर भी ,राजनीति गरमाती है ;
हमदर्दी रखने वालों को ,शरम क्यों नहीं आती है ;
भारत माँ पर कट्टर दुश्मन ,करते हैं आघात सदा ;
चुन-चुन मारो गद्दारों को,फांसी राह दिखाती है।


*****सुरेशपाल वर्मा जसाला [दिल्ली]

रविवार, 26 जुलाई 2015

मुक्तक / muktak

मुक्तक / muktak
******नये हालात पर एक नया मुक्तक *******
आतंकी को गले लगाते और करते उनका समर्थन भी !
खंड खंड तन उनका कर दो, काटो उन दुष्टों की गर्दन भी !!
देश द्रोह अपराध बडा है, उनको नही कभी माँफी देना !
हतोत्साहित हो आतंकी सब, हो दुष्ट के गर्व का मर्दन भी !!
******सुरेशपाल वर्मा जसाला ( दिल्ली )



गुरुवार, 23 जुलाई 2015

मुक्तक (muktak) : बाधाओं पर जय जो पाते

**मुक्तक (muktak)) : बाधाओं पर जय जो पाते**
बाधाओं पर जय जो पाते ,वो ही हिम्मत वाले होते
शूलों पर भी नाचें गावें ,साहस के  रखवाले होते
झंझावातों से लड़ जाते ,तूफां  से भी लेते टक्कर
प्रकट सदा वे काल रूप में ,शिखर चूमने वाले होते
*****सुरेशपाल वर्मा जसाला (दिल्ली)


बुधवार, 22 जुलाई 2015

वर्ण पिरामिड / varn piramid (जसाला पिरामिड / jasala piramid )

((((((****यह मेरी नवविधा है - ''वर्ण पिरामिड''****))))) 
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[इसमे प्रथम पंक्ति में -एक ; द्वितीय में -दो ; तृतीया में- तीन ; चतुर्थ में -चार; पंचम में -पांच; षष्ठम में- छः; और सप्तम में -सात वर्ण है,,, इसमें केवल पूर्ण वर्ण गिने जाते हैं ,,,,मात्राएँ या अर्द्ध -वर्ण नहीं गिने जाते ,,,यह केवल सात पंक्तियों की ही रचना है इसीलिए सूक्ष्म में अधिकतम कहना होता है ,,किन्ही दो पंक्तियों में तुकांत मिल जाये तो रचना में सौंदर्य आ जाता है ] जैसे-
ये
वर्षा
कनक-
झरें बूंदें,
उड़े विहग ,
तरुवर सूने ,
आनंद कंद फूले । [१]
थे
वट
पीपल ,
आम,नीम,
कुँए के पास ,
झूलों की मस्ती में -
खिले मन उदास।  [२]


हे
प्रभु
शंकर !
बेल-पत्र -
करूँ अर्पण ,
हो व्याधि निदान ,
कष्टों का समाधान । [३]

तू
मेरा,
में तेरा,
जीव-जीव
कण -कण का
तू ही आधार है ,
प्रभु  निर्विकार है। [४]
 ********सुरेशपाल वर्मा जसाला [दिल्ली]

गीतिका : (तोता बैठा है मंदिर पर)



विधा-गीतिका
मात्राभार -16 +16 प्रति पंक्ति ,,,मापनी मुक्त 
केवल पदांत =ऐना
तोता बैठा है मंदिर पर ,,,,,,,,,,,,,,,मस्जिद पर बैठी है मैना ,
दूर-दूर बैठे  है दोनों  ,,,,,,,,,,,,,,,,पर डोर प्रेम की दिन -रैना ।
नाचे मोर चर्च के ऊपर ,,,,,,,,,,,कोकिल कूके गुरु-द्वारे पर ,
जब तक आँखे चार न कर लें ,कभी न मिलती उनको चैना ।
 मंदिर तोता उड़ मस्जिद पे ,,,,,,मस्जिद की मैना मंदिर पे ,
उड़ते दोनों सँग -सँग देखो ,,,,,,,,,,,,भेदभाव कोई मन है ना ।
कभी मोर गुरु-द्वारे जाता,,,,,,,,,अरु कोयल जाती चर्चों पर ,
कूक -कूक मस्ती में गावें ,,,,,,,,,,मोहक उनके मिसरी बैना ।
भेदभाव क्यूँ हमने धारा ,,,,,,क्यूँ नफ़रत पाली मन-मन में ,
धो डालें आओ दाग सभी ,,,,,,,,,,ये  रगड़ प्रीत-साबुन फैना ।










कहे जसाला स्वयं को बदले ,,,,बदल जायेगी सारी  दुनिया ,
स्वार्थ की जंजीरें तोड़ें ,,,,,,,,,,,,,,,,,,चमक उठेंगे सबके नैना ।
*****सुरेशपाल वर्मा जसाला (दिल्ली)

शुक्रवार, 17 जुलाई 2015

विधा -गीत ( मंदिर मस्जिद गुरु-द्वारे )

विधा -गीत ( मंदिर मस्जिद गुरु-द्वारे )
मात्राभार प्रति पंक्ति =16 +16


मंदिर मस्जिद गुरु-द्वारे की,
अन्तर-व्यथा को  कहूँ  कैसे ?
नीर  भरे  उनके   नैनों   की ,
पीड़ा  को  बयाँ  करूँ  कैसे ?


मंदिर ने मस्जिद से  पूछा ,
री ! हाल बता क्या है तेरा ?
मस्जिद बोली आतँक गहरा,
निर्दोषी  रक्त  सहूँ  कैसे ?

मस्जिद भी पूछे मंदिर से,
तू भी तो हाल बता अपना ;
मंदिर बोला  लड़ते  सारे ,
मैं  चिन्ताहीन रहूँ  कैसे ?

गुरु-द्वारे ने  मौका  देखा ,
चर्च से पूछा  उसका हाल ;
भीषण  बम्ब बनाते  सारे,
दुखी मन, विनाश वरूँ कैसे ?

चर्च का प्रश्न गुरु-द्वारे से ,
अब कैसे कटते दिन तेरे  ?
उत्तर आया ईर्ष्या में सब ,
आँसू  अपने  रोकूँ   कैसे ?

आँखें  उनकी  भरी-भरी थी ,
था दिल भी उनका भरा-भरा ;
सपना ही था  पर अच्छा था ,
उसको  मैं  अब  भूलूँ  कैसे ?

हृदयहीन तो चिन्तित देखे,
पर हृदयवान हैं  सब  जीरो ;
मानव मानवता छोड़ चला ,
उसको मानव कह दूँ   कैसे ?

*****सुरेशपाल वर्मा जसाला (दिल्ली)