शनिवार, 20 जून 2015

गीतिका / हिंदी ग़ज़ल : (मानवता की खातिर जो)



विधा=गीतिका / हिंदी ग़ज़ल
मात्राभार =14 + 12 ( 2222222 + 222222 )
समान्त =उक  ,,  पदांत=पाया

मानवता की खातिर जो , तनिक नहीं झुक पाया
प्यार खजाने से उसका , अंतस्थल खुक पाया

रंकाई का मालिक वो , काम सभी के आये
टुकड़ा मुँह का भी देता ,  हाथ नहीं रुक पाया

जीवन तोता मैना  सा ,चर्चा अधर-अधर पर
जब सँग मैना  का छूटा ,क्रंदित वो शुक पाया

झंझावातों से लड़ता , करता श्रम स्वेदनमय
दिनकर  की ज्वाला में भी ,मन वचन न फुक पाया

भंडार बहु  भरे धन के , बैठा लालच मन में
अंत तक नहीं समझ सका, धन का भिक्षुक पाया

बिजुरी कड़की कुछ ऐसी ,लड़ जीवन की बिखरी
देख जसाला अँधियारा ,जन- मन धुक-धुक पाया

*****सुरेशपाल वर्मा जसाला [दिल्ली]




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