विधा=गीतिका / हिंदी ग़ज़ल
मात्राभार =14 + 12 ( 2222222 + 222222 )
समान्त =उक ,, पदांत=पाया
मानवता की खातिर जो , तनिक नहीं झुक पाया
प्यार खजाने से उसका , अंतस्थल खुक पाया
रंकाई का मालिक वो , काम सभी के आये
टुकड़ा मुँह का भी देता , हाथ नहीं रुक पाया
जीवन तोता मैना सा ,चर्चा अधर-अधर पर
जब सँग मैना का छूटा ,क्रंदित वो शुक पाया
झंझावातों से लड़ता , करता श्रम स्वेदनमय
दिनकर की ज्वाला में भी ,मन वचन न फुक पाया
भंडार बहु भरे धन के , बैठा लालच मन में
अंत तक नहीं समझ सका, धन का भिक्षुक पाया
बिजुरी कड़की कुछ ऐसी ,लड़ जीवन की बिखरी
देख जसाला अँधियारा ,जन- मन धुक-धुक पाया
*****सुरेशपाल वर्मा जसाला [दिल्ली]
avashy dekhiye
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