*****राजखेल *****
राजखेल में महाधुरन्धर
मानवता का पद्दलन करते
रक्त पिपासु काक श्रृगाल
बोटी नोंच भक्षण करते
धूर्त शकुनी चलकर चालें
धर्मराज का अपहरण करते
स्याह-भ्रष्ट कर्मों के संगी
देश धन को हड़प करते
वस्त्र विहीन कर अस्मिता को
नग्नता का परचम फरते
आतंक के संग मेल मिला
नर-पिशाच हैं वे बनते
राजनीति के भ्रष्ट- धुरंधर
देश-धर्म गिरवी रखते
भारत माँ की सौगातों का
वोटों बीच दलन करते
**** सुरेशपाल वर्मा जसाला (दिल्ली)
राजखेल में महाधुरन्धर
मानवता का पद्दलन करते
रक्त पिपासु काक श्रृगाल
बोटी नोंच भक्षण करते
धूर्त शकुनी चलकर चालें
धर्मराज का अपहरण करते
स्याह-भ्रष्ट कर्मों के संगी
देश धन को हड़प करते
वस्त्र विहीन कर अस्मिता को
नग्नता का परचम फरते
आतंक के संग मेल मिला
नर-पिशाच हैं वे बनते
राजनीति के भ्रष्ट- धुरंधर
देश-धर्म गिरवी रखते
भारत माँ की सौगातों का
वोटों बीच दलन करते
**** सुरेशपाल वर्मा जसाला (दिल्ली)
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