सोमवार, 18 मई 2015

गाँव (*गाँव पर एक कुंडली *)

*****गाँव पर एक कुंडली *****
काना-बतिया  कर रहे ,,वृक्ष सभी इक साथ ;
क्रन्दित शाखा झुक रही ,,,,पकड़ै मेरे हाथ ।
पकड़ै मेरे हाथ ,,,,,,,,,,,,पात भी राग सुनावै ;
डगर- खेत-खलिहान,,,सभी मस्ती में गावैं ।
पक्षी कलरव होय,,,,, मधुर आनंदित गाना ;
आवे बचपन याद,,,,,,,,उडे जो कौआ काना ।


*************सुरेशपाल वर्मा जसाला

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